उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में साल 2022 में हुए अंकिता भंडारी हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। अब 28 महीने और 12 दिन बाद इस बहुचर्चित मामले में कोर्ट का फैसला आया है, जिसमें सभी तीनों आरोपियों को दोषी ठहराकर उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। लेकिन हैरानी की बात ये है कि परिवार इस फैसले से संतुष्ट नहीं है। आइए जानते हैं पूरा मामला, जांच और कोर्ट के फैसले तक की पूरी कहानी।
कौन थी अंकिता भंडारी?
अंकिता भंडारी, 19 वर्षीय युवती, अगस्त 2022 में पौड़ी जिले के यमकेश्वर स्थित वानंत्रा रिजॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट के रूप में काम करने लगी थीं। 18 सितंबर को वह अचानक लापता हो गईं। शुरुआत में मामला सामान्य गुमशुदगी का समझा गया, लेकिन जैसे-जैसे परतें खुलीं, ये केस एक जघन्य अपराध में बदल गया।
हत्या के पीछे की वजह और आरोप
आरोप था कि रिजॉर्ट के मालिक पुलकित आर्य (भाजपा से निष्कासित नेता विनोद आर्य के बेटे) अंकिता पर मेहमानों को “स्पेशल सर्विस” देने का दबाव बना रहे थे। जब अंकिता ने विरोध किया, तो पुलकित, उसके साथी अंकित गुप्ता और सौरभ भास्कर ने उसे मारकर चिल्ला नहर में फेंक दिया। 24 सितंबर को उसका शव बरामद हुआ।
जांच में क्या हुआ?
शुरुआत में पुलिस की धीमी कार्रवाई को लेकर काफी आक्रोश हुआ। तब मामले की जांच एसआईटी को सौंपी गई, जिसकी अगुवाई DIG रैंक की IPS अधिकारी पी. रेनूका देवी ने की। 22 दिसंबर 2022 को पुलिस ने 500 पेज की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की जिसमें IPC की धारा 302 (हत्या), 201 (सबूत मिटाना), 120B (षड्यंत्र), 354A (यौन उत्पीड़न) और अनैतिक व्यापार रोकथाम अधिनियम की धाराएं शामिल थीं।
कोर्ट का फैसला क्या रहा?
कोटद्वार की एडिशनल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस कोर्ट की जज रीना नेगी ने तीनों आरोपियों—पुलकित आर्य, अंकित गुप्ता और सौरभ भास्कर—को दोषी ठहराते हुए कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनाई। कोर्ट में कुल 47 गवाहों के बयान दर्ज किए गए और मोबाइल लोकेशन, कॉल डेटा रिकॉर्ड, फॉरेंसिक एविडेंस समेत अन्य सबूत पेश किए गए।
परिवार क्यों है नाखुश?
अंकिता के पिता वीरेंद्र भंडारी ने कहा, “हमें मौत के बदले मौत की उम्मीद थी, लेकिन कोर्ट ने उम्रकैद दी है। हम खुश नहीं हैं।” उन्होंने आरोप लगाया कि आरोपियों की ओर से अब भी परिवार को धमकियां दी जा रही हैं और महत्वपूर्ण सबूत वाले रिजॉर्ट को जानबूझकर गिरा दिया गया।
राजनीतिक विवाद और जनता का आक्रोश
इस केस ने पूरे उत्तराखंड में जन आक्रोश भड़का दिया था। भाजपा ने आरोपी के पिता विनोद आर्य को पार्टी से निष्कासित कर दिया था। वहीं, राज्य सरकार ने रिजॉर्ट को बुलडोजर से ढहा दिया, जिस पर विपक्ष ने सबूत नष्ट करने का आरोप लगाया।
निष्कर्ष
28 महीने बाद आखिरकार न्याय की एक बड़ी जीत हुई है, लेकिन अंकिता का परिवार अब भी खुद को अधूरा महसूस कर रहा है। इस केस ने सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि हमारे समाज, राजनीति और सिस्टम की गहराई से परख की है। शायद यही वजह है कि यह मामला लंबे समय तक लोगों के दिलों-दिमाग में बना रहेगा।
